HomeHindi Storiesदादी माँ की सीख देती 2 कहानिया | Dadi Maa Ki Kahani

दादी माँ की सीख देती 2 कहानिया | Dadi Maa Ki Kahani

Dadi Maa Ki Kahaniya – जब हम छोटे थे तब हम सबका बचपन दादी माँ के पास ज्यादा से ज्यादा वक्त गुजरता था और फिर दादी माँ से हमे ऐसें अनेको कहानिया सुनने को मिलती थी जो की बहुत मनोरंजक और सीख देने वाली होती थी, तो ऐसे में आप भी Dadi Maa Ki Kahani सुनना चाहते है तो आज हम आपके लिए दादी माँ की कहानी लेकर आये है जिन्हें पढ़कर आप इन कहानियो से अच्छी सीख ले सकते है तो चलिए Dadi Maa Ki Kahaniya को जानते है

दादी माँ की कहानिया | Dadi Maa Ki Kahani

Dadi Maa Ki Kahaniतो चलिए दादी माँ की दो कहानियो को जानते है जिनसे हम अच्छी सीख ले सकते है.

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किसी गांव में साईराम नाम का एक साधु रहा करता था। बड़ा ही भला आदमी था। अपने साथ बुराई करने वालों के साथ भी वो हमेशा भलाई ही करता था। गांव के किनारे एक छोटी सी कुटिया में अकेला ही रहता, अपने घर आने वालों की खूब खातिरदारी करता, ध्यान रखता और अच्छा अच्छा खाना खिलाता था।

गर्मियों के दिन थे,  खूब गर्मी पड़ रही थी और लू चल रही थी। एक आदमी दोपहर में कहीं जा रहा था लेकिन ज्यादा गर्मी होने और लू लगने से वह साईराम की कुटिया के बाहर ही बेहोश होकर गिर पड़ा। साईराम ने जैसे ही देखा कि उस की कुटिया के बाहर कोई बेहोश पड़ा है तो वो उसे तुरंत अंदर ले गया और उसकी सेवा में लग गया। पानी पिलाया, सर पर गीला कपड़ा रखा और हाथ के पंखे से काफी देर तक हवा की, तब जाकर उसे होश आया।

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होश आने पर उस आदमी ने साईराम से कहा की मैं बहुत भूखा हूँ,  कृपया करके कुछ खाने को दे दीजिए। साईराम ने कहा ठीक है मुझे थोड़ा सा समय दीजिए। कुछ ही मिनट में साईराम ने बहुत बढ़िया बढ़िया ताजे पकवान खाने के लिए परोस दिए। उसने ताबड़तोड़ खाना खाया और फटाफट सारे पर पकवान चट कर गया। वह आदमी एक चोर था जो दोपहर में सुनसान देखकर चोरी करने के लिए निकला था। खाना खाने के बाद चोर को इस बात की हैरानी हुई कि साईराम ने इतनी जल्दी खाना कैसे तैयार कर लिया।

उसने साईराम से पूछा – महाराज जी यह बताइए आपने इतने कम समय में खाना कैसे तैयार कर लिया? साईराम ने चोर को बताया कि मेरे पास एक चमत्कारी थाली है। इस थाली की मदद से मैं पल भर में जो भी जी चाहे खाने के लिए बना सकता हूँ। चोर ने हैरान होकर पूछा – क्या आप मुझे वह थाली दिखा सकते हैं? मैं यह सब अपनी आंखों से देखना चाहता हूँ। 

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साईराम अंदर गया, एक थाली लाकर चोर के आगे रखी और कहा – मुझे केले चाहियें । थाली तुरंत केलों से भर गई। चोर हैरान रह गया और उसके मन में थाली के लिए लालच पैदा हो गया। उसने साधु से पूछा – मान्यवर क्या मैं आज रात आपकी कुटिया में रुक सकता हूं? साधु एकदम से राजी हो गया। जब साधु गहरी नींद में सो रहा था तो चोर ने थाली उठाई और वहां से चंपत हो गया।

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थाली चुराकर चोर सोच रहा था कि अब तो मेरी मौज ही मौज है, जो भी जी चाहे थाली से मांग लूंगा। उसने थाली अपने घर में रखी और थाली से कहा मुझे टंगड़ी कबाब चाहिए। मगर थाली में कुछ नहीं आया। फिर उसने कहा मुझे मलाई चाप चाहिए। थाली अभी खाली थी। चोर ने कहा सेब ला के दो। थाली में फिर भी कुछ नहीं आया। चोर को जितनी भी खाने की चीजों के नाम याद थे उसने सब बोल डालें लेकिन थाली खाली की खाली ही रही।

चोर तुरंत भागता हुआ थाली लेकर साधु के पास गया और बोला – महात्मा, भूल से मैं आपका बर्तन अपने साथ ले गया। मुझे माफ कीजिए अपना बर्तन वापस ले लीजिए। 

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साईराम बिल्कुल नाराज नहीं हुआ। बर्तन लेकर साईराम ने उसी समय कई अच्छे पकवान बर्तन से देने को कहा और बर्तन में तुरंत वह आ गए।

साईराम ने चोर को एक बार फिर बढ़िया खाना खिलाया। चोर फिर हैरान हो गया और अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाया। उसने साधु से पूछा- महाराज जब यह बर्तन मेरे पास था तब इसने कोई काम नहीं किया। मैंने इससे बहुत सारे पकवान मांगे मगर इसने मुझे कुछ नहीं दिया। 

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साधु ने कहा – भाई देखो जब तक मैं जिंदा हूं तब तक यह बर्तन किसी और के काम नहीं आ सकता, मेरे मरने के बाद ही कोई और इसे उपयोग कर पाएगा। 

बर्तन के चमत्कार का भेद पाकर चोर मन ही मन बहुत खुश हुआ, सोच रहा था कि अब तो मैं इस महात्मा का खात्मा करके बर्तन का फायदा उठाऊंगा।

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अगले दिन चोर फिर साधु के घर आया और साथ में घर से खीर बनाकर लाया। वह बोला – महाराज आपने मेरी इतनी सेवा की है। मुझे दो बार बहुत लाजवाब स्वादिष्ट पकवान खिलाए हैं इसलिए मैं भी आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ। मैं आपके लिए खीर लाया हूँ। कृपया आप स्वीकार कर लीजिए। साधु ने बिना किसी संकोच के चोर की दी हुई खीर खाई और चोर को धन्यवाद किया। कहा – तुम्हारी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बनी है। चोर खीर में जहर मिला कर लाया था।

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खीर खिलाकर चोर वापस अपने घर चला गया। रात होने पर वापस साधु की कुटिया में आया, थाली को फिर से चुराने के लिए। उसे पक्का यकीन था की जहर से अब तक तो साधु का काम तमाम हो चुका होगा। चोर जैसे ही थाली की ओर बढ़ा तो उसे किसी चीज से ठोकर लगी। आवाज सुनकर साईराम ने आंखें खोली और उठकर चारपाई पर बैठ गया। बोला – कौन है भाई? 

चोर की हैरानी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। वह बड़ी हैरानी से बोला – महाराज आप अभी तक जीवित हैं? 

साधु बोला – क्यों भाई तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं जीवित नहीं हूँ? 

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चोर ने कहा – मैंने दोपहर में आपको जो खीर खिलाई थी उसमें बहुत तेज जहर मिला हुआ था। मैं तो यही सोच रहा था कि ज़हर के असर से आप मर चुके होंगे। 

साधु ने कहा – देखो भाई मैं निस्वार्थ भाव से लोगों की खूब सेवा करता हूँ और सच्ची निष्ठा से भगवान का जप भी करता हूँ, साथ ही योगाभ्यास भी करता हूँ। इसलिए मुझे यह आशीर्वाद प्राप्त है की कितना भी तेज जहर क्यों ना हो मैं उसे आसानी से पचा सकता हूँ। किसी भी जहर का मुझ पर कोई असर नहीं होगा। 

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चोर ने निराश होकर कहा – महाराज मैं तो आपको मार कर आप के पतीले का लाभ लेना चाहता था लेकिन मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।  

संत ने कहा – भाई मैं इसमें क्या कर सकता हूँ, तुम्हारी किस्मत ही अच्छी नहीं है। बोलो अगर भूख लगी हो तो खाने का प्रबंध करूँ? 

चोर बड़ा शर्मिंदा हुआ, बोला – महाराज मैं तो आपको धोखे से मारना चाहता था मगर फिर भी आपने मुझसे नफरत नहीं की। उल्टा आप तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार कर रहे हैं। यह बात मुझे बहुत ही अजीब सी लग रही है। 

साधु ने कहा – भाई इसमें क्या अजीब बात है, अच्छाई करना मेरी आदत है बुराई करना तुम्हारी आदत है। तुम बुराई करना नहीं छोड़ पा रहे मैं अच्छाई करना नहीं छोड़ सकता। तुम अपनी आदत से लाचार हो मैं अपनी आदत से लाचार हूँ।

कहानी से शिक्षा :- इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की हमारी परिस्थितिया चाहे जैसी भी हो लेकिन कभी अपनी अच्छाई का मार्ग नही छोड़ना चाहिए.

दादी माँ की कहानिया | Dadi Maa Ki Kahani

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एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पडा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरुरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सुचित करना था।

बहुत समय उडने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’

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सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया।

सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।

कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत?”

एक कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।” बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोडे तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।”

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युवा कबूतर फडफडाया “चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?” सरदार बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।” सबने ऐसा ही किया।

तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल की ओर दौडा। बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला “फुर्रर्रर्र!” सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उडने लगे।

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कबूतरों को जाल सहित उडते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौडने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौडते पाया तो उसका इरादा समझ गया।

सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उडते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाडी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेजी से उस पहाडी की ओर उडने का आदेश दिया। पहाडी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे। सरदार ने मित्र चूहे को आवाज दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया।

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सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आजादी की उडान भरने लगा।

कहानी से शिक्षा :- इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की यदि सभी मिलजुलकर सभी एकसाथ एकता के साथ रहे तो उन्हें कोई हरा नही सकता है.

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