HomeHindi Poemमहाराणा प्रताप पर कविता | Maharana Pratap Poem in Hindi

महाराणा प्रताप पर कविता | Maharana Pratap Poem in Hindi

Maharana Pratap ki Kavita

महाराणा प्रताप पर कविता

भारतीय इतिहास अनेक महान शूरवीरों के गाथाओ से भरा पड़ा है, जिनमे महाराणा प्रताप का नाम बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है, महाराणा प्रताप एक ऐसे महान योद्धा और राजा थे जिन्होने जीवन पर्यंत स्वतन्त्रता के साथ जिये, घास की रोटिया खाना पसंद किया, दर दर की ठोकरे खाई लेकिन कभी भी पराधीनता स्वीकार नहीं किया, तो चलिये इस पोस्ट मे महाराणा प्रताप के जुड़ी अनेक महान कवितायो को जानते है, जिनसे हमे जीने की प्रेरणा श्रोत्र मिलती है,

महाराणा प्रताप की कविता

Maharana Pratap Poem in Hindi

महाराणा प्रताप पर कविता – रण बीच चौकड़ी भर-भर कर

Maharana Pratap ki Kavitaरण बीच चौकड़ी भर-भर कर

चेतक बन गया निराला था

Follow AchhiAdvice at WhatsApp Join Now
Follow AchhiAdvice at Telegram Join Now

राणाप्रताप के घोड़े से

पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली

लेकर सवार उड़ जाता था

राणा की पुतली फिरी नहीं

तब तक चेतक मुड़ जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर

राणाप्रताप का कोड़ा था

वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर

वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं

वह वहीं रहा था यहाँ नहीं

थी जगह न कोई जहाँ नहीं

किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में

सरपट दौडा करबालों में

फँस गया शत्रु की चालों में

बढ़ते नद-सा वह लहर गया

फिर गया गया फिर ठहर गया

विकराल वज्रमय बादल-सा

अरि की सेना पर घहर गया

भाला गिर गया गिरा निसंग

हय टापों से खन गया अंग

बैरी समाज रह गया दंग

घोड़े का ऐसा देख रंग

गाथा फैली घर-घर है,

आजादी की राह चले तुम,

सुख से मुख को मोड़ चले तुम,

‘नहीं रहूं परतंत्र किसी का’,

तेरा घोष अति प्रखर है,

राणा तेरा नाम अमर है।

भूखा-प्यासा वन-वन भटका,

खूब सहा विपदा का झटका,

नहीं कहीं फिर भी जो अटका,

एकलिंग का भक्त प्रखर है,

भारत राजा, शासक, सेवक,

अकबर ने छीना सबका हक,

रही कलेजे सबके धक्-धक्

पर तू सच्चा शेर निडर है,

राणा तेरा नाम अमर है।

मानसिंह चढ़कर के आया,

हल्दी घाटी जंग मचाया,

तेरा चेतक पार ले गया,

पीछे छूट गया लश्कर है,

राणा तेरा नाम अमर है।

वीरों का उत्साह बढ़ाए,

कवि जन-मन के गीत सुनाएं,

नित स्वतंत्रता दीप जलाएं,

शौर्य सूर्य की उज्ज्वलकर है,

राणा तेरा नाम अमर है। राणा तेरा नाम अमर है।

महाराणा प्रताप पर कविता – राणा की वीर भुजा

राणा की वीर भुजा पर बलिदान दिखाई देता था

चेतक के स्वामी भक्ति पर अभिमान दिखाई देता था.

रण बन्कुर में रण डेरी जब जब बजाई जाती थी.

राणा के संग चेतक की पीठ सजाई जाती थी.

युध्द भूमि में जब राणा सिंहो से गरजा करते थे.

दुश्मन के ऊपर जब मेघों से बरसा करते थे.

शत्रु राणा को देख पहले ही डर जाता था

पल भर में राणा का भाला छाती में धस जाता था.

रण भूमि में केवल तलवारो की टंकार सुनाई देती थी .

कटते दुश्मन की मुण्डो की चित्कार सुनाई देती थी

पवन वेग से तेज सदा चेतक दौडा करता था.

दुश्मन देख उसे रण को छोडा करता था.

राणा और चेतक जहा से निकल जा जाया करते थे

शत्रु के पौरुष वही धरा पर गिर जाया करते थे.

रण बीच घिरे थे राणा दुश्मन भी भौचके थे

देख चेतक की ताकत को सब के अक्के बक्के थे.

युद्ध भूमि में जब शंख नाद हो जाता था

राणा के अन्दर काल प्रकट हो जाता था

राणा का वक्षस्थल जिस दिशा में मुड़ जाता था.

चेतक उसी दिशा में हिम गिरि सा अड जाता था.

विश्व पटल पर तेरी चर्चा अब हर कोई गायेगा.

चेतक की स्वामी भक्ति पर जन जन शिश नवायेगा .

ओमप्रकाश मेरोटा हाड़ौती

महाराणा प्रताप की हिन्दी मे कविता – धन्य हुआ रे राजस्थान

धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।

धन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने।।

फीका पड़ा था तेज़ सुरज का, जब माथा उन्चा तु करता था।

फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख खोली प्रताप ने।।

जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी।

फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी।।

था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तु सवारी करता था।

थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था।।

हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे।

देख के उसकी शक्ती को, हर दुशमन उससे डरा करे।।

करता हुं नमन मै प्रताप को,जो वीरता का प्रतीक है।

तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त,तु अखण्डता का प्रतीक है।।

हे प्रताप मुझे तु शक्ती दे,दुश्मन को मै भी हराऊंगा।

मै हु तेरा एक अनुयायी,दुश्मन को मार भगाऊंगा।।

है धर्म हर हिन्दुस्तानी का,कि तेरे जैसा बनने का।

चलना है अब तो उसी मार्ग,जो मार्ग दिखाया प्रताप ने।।

महाराणा प्रताप जयंती पर कविता – चढ़ चेतक पर तलवार उठा

चढ़ चेतक पर तलवार उठा,

रखता था भूतल पानी को।

राणा प्रताप सिर काट काट,

करता था सफल जवानी को।।

कलकल बहती थी रणगंगा,

अरिदल को डूब नहाने को।

तलवार वीर की नाव बनी,

चटपट उस पार लगाने को।।

वैरी दल को ललकार गिरी,

वह नागिन सी फुफकार गिरी।

था शोर मौत से बचो बचो,

तलवार गिरी तलवार गिरी।।

पैदल, हयदल, गजदल में,

छप छप करती वह निकल गई।

क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर,

देखो चम-चम वह निकल गई।।

क्षण इधर गई क्षण उधर गई,

क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई।

था प्रलय चमकती जिधर गई,

क्षण शोर हो गया किधर गई।।

लहराती थी सिर काट काट,

बलखाती थी भू पाट पाट।

बिखराती अवयव बाट बाट,

तनती थी लोहू चाट चाट।।

क्षण भीषण हलचल मचा मचा,

राणा कर की तलवार बढ़ी।

था शोर रक्त पीने को यह,

रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी।।

महाराणा प्रताप जयंती पर कविता हिंदी में – मुगल काल में पैदा हुआ वो

Maharana Pratap Poem in Hindi

मुगल काल में पैदा हुआ वो बालक कहलाया राणा

होते जौहर चित्तौड़ दुर्ग फिर बरसा मेघ बन के राणा।

हरमों में जाती थीं ललना बना कृष्ण द्रौपदी का राणा

रौंदी भूमि ज्यों कंस मुग़ल बना कंस को अरिसूदन राणा।

छोड़ा था साथियों ने भी साथ चल पड़ा युद्ध इकला राणा

चेतक का पग हाथी मस्तक ज्यों नभ से कूद पड़ा राणा।

मानसिंह भयभीत हुआ जब भाला फैंक दिया राणा

देखी शक्ति तप वीर व्रती हाथी भी कांप गया राणा।

चहुँ ओर रहे रिपु घेर देख सोचा बलिदान करूँ राणा

शत्रु को मृगों का झुण्ड जान सिंहों सा टूट पड़ा राणा।

देखा झाला यह दृश्य कहा अब सूर्यास्त होने को है

सब ओर अँधेरा बरस रहा लो डूबा आर्य भानु राणा।

गरजा झाला के भी होते रिपु कैसे छुएगा तन राणा

ले लिया छत्र अपने सिर पर अविलम्ब निकल जाओ राणा।

हुंकार भरी शत्रु को यह मैं हूँ राणा मैं हूँ राणा

नृप भेज सुरक्षित बाहर खुद बलि दे दी कह जय हो राणा

कह नमस्कार भारत भूमि रक्षित करना रक्षक राणा!

चेतक था दौड़ रहा सरपट जंगल में लिए हुए राणा

आ रहा शत्रुदल पीछे ही नहीं छुए शत्रु स्वामी राणा।

आगे आकर एक नाले पर हो गया पार लेकर राणा

रह गए शत्रु हाथों मलते चेतक बलवान बली राणा।

ले पार गया पर अब हारा चेतक गिर पड़ा लिए राणा

थे अश्रु भरे नयनों में जब देखा चेतक प्यारा राणा।

अश्रु लिए आँखों में सिर रख दिया अश्व गोदी राणा

स्वामी रोते मेरे चेतक! चेतक कहता मेरे राणा!

हो गया विदा स्वामी से अब इकला छोड़ गया राणा

परताप कहे बिन चेतक अब राणा है नहीं रहा राणा।

सुन चेतक मेरे साथी सुन जब तक ये नाम रहे राणा

मेरा परिचय अब तू होगा कि वो है चेतक का राणा!

अब वन में भटकता राजा है पत्थर पे सोता है राणा

दो टिक्कड़ सूखे खिला रहा बच्चों को पत्नी को राणा।

थे अकलमंद आते कहते अकबर से संधि करो राणा

है यही तरीका नहीं तो फिर वन वन भटको भूखे राणा।

हर बार यही उत्तर होता झाला का ऋण ऊपर राणा

प्राणों से प्यारे चेतक का अपमान करे कैसे राणा।

एक दिन बच्चे की रोटी पर झपटा बिलाव देखा राणा

हृदय पर ज्यों बिजली टूटी अंदर से टूट गया राणा।

ले कागज़ लिख बैठा, अकबर! संधि स्वीकार करे राणा

भेजा है दूत अकबर के द्वार ज्यों पिंजरे में नाहर राणा।

देखा अकबर वह संधि पत्र वह बोला आज झुका राणा

रह रह के दंग उन्मत्त हुआ कह आज झुका है नभ राणा।

विश्व विजय तो आज हुई बोलो कब आएगा राणा

कब मेरे चरणों को झुकने कब झुक कर आएगा राणा।

पर इतने में ही बोल उठा पृथ्वी यह लेख नहीं राणा

अकबर बोला लिख कर पूछो लगता है यह लिखा राणा।

पृथ्वी ने लिखा राणा को क्या बात है क्यों पिघला राणा?

पश्चिम से सूरज क्यों निकला सरका कैसे पर्वत राणा?

चातक ने कैसे पिया नदी का पानी बता बता राणा?

मेवाड़ भूमि का पूत आज क्यों रण से डरा डरा राणा?

भारत भूमि का सिंह बंधेगा अकबर के पिंजरे राणा?

दुर्योधन बाँधे कृष्ण तो क्या होगी कृष्णा रक्षित राणा?

अब कौन बचायेगा सतीत्व अबला का बता बता राणा?

अब कौन बचाए पद्मिनियाँ जौहर से तेरे बिन राणा?

यह पत्र मिला राणा को जब धिक्कार मुझे धिक्कार मुझे

कहकर ऐसा वह बैठ गया अब पश्चाताप हुआ राणा।

चेतक झाला को याद किया फिर फूट फूट रोया राणा

बोला इस पापकर्म पर तुम अब क्षमा करो अपना राणा।

और लिख भेजा पृथ्वी को कि नहीं पिघल सके ऐसा राणा

सूरज निकलेगा पूरब से, नहीं सरक सके पर्वत राणा।

चातक है प्रतीक्षारत कि कब होगी वर्षा पहली राणा

भारत भूमि का पुत्र हूँ फिर रण से डरने का प्रश्न कहाँ?

भारत भूमि का सिंह नहीं अकबर के पिंजरे में राणा

दुर्योधन बाँध सके कृष्ण ऐसा कोई कृष्ण नहीं राणा।

जब तक जीवन है इस तन में तब तक कृष्णा रक्षित राणा

अब और नहीं होने देगा जौहर पद्मिनियों का राणा!

महाराणा प्रताप जयंती पर कविता – राणा सांगा का ये वंशज

राणा सांगा का ये वंशज,

रखता था रजपूती शान।

कर स्वतंत्रता का उद्घोष,

वह भारत का था अभिमान।

 

मानसींग ने हमला करके,

राणा जंगल दियो पठाय।

सारे संकट क्षण में आ गए,

घास की रोटी दे खवाय।

 

हल्दी घाटी रक्त से सन गई,

अरिदल मच गई चीख-पुकार।

हुआ युद्ध घनघोर अरावली,

प्रताप ने भरी हुंकार।

 

शत्रु समूह ने घेर लिया था,

डट गया सिंह-सा कर गर्जन।

सर्प-सा लहराता प्रताप,

चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन।

मान सींग को राणा ढूंढे,

चेतक पर बन के असवार।

हाथी के सिर पर दो टापें,

रख चेतक भरकर हुंकार।

 

रण में हाहाकार मचो तब,

राणा की निकली तलवार

मौत बरस रही रणभूमि में,

राणा जले हृदय अंगार।

 

आंखन बाण लगो राणा के,

रण में न कछु रहो दिखाय।

स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो,

राणा के लय प्राण बचाय।

 

मुकुट लगाकर राणाजी को,

मन्नाजी दय प्राण गंवाय।

प्राण त्यागकर घायल चेतक,

सीधो स्वर्ग सिधारो जाय।

सौ मूड़ को अकबर हो गयो,

जीत न सको बनाफर राय।

स्वाभिमान कभी नहीं छूटे,

चाहे तन से प्राण गंवाय।

महाराणा प्रताप पर कविता हिंदी में – यह एकलिंग का आसन है

यह एकलिंग का आसन है

इस पर न किसी का शासन है

नित सिहक रहा कमलासन है

यह सिंहासन सिंहासन है

यह सम्मानित अधिराजों से

अर्चित है¸ राज–समाजों से

इसके पद–रज पोंछे जाते

भूपों के सिर के ताजों से

इसकी रक्षा के लिए हुई

कुबार्नी पर कुबार्नी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

थरथरा रहा था अवनी–तल…

खिलजी–तलवारों के नीचे

थरथरा रहा था अवनी–तल

वह रत्नसिंह था रत्नसिंह

जिसने कर दिया उसे शीतल

मेवाड़–भूमि–बलिवेदी पर

होते बलि शिशु रनिवासों के

गोरा–बादल–रण–कौशल से

उज्ज्वल पन्ने इतिहासों के

जिसने जौहर को जन्म दिया

वह वीर पद्मिनी रानी है

राणा¸ तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

मूंजा के सिर के शोणित से

जिसके भाले की प्यास बुझी

हम्मीर वीर वह था जिसकी

असि वैरी–उर कर पार जुझी

रत्नों से अंचल भरने का…

प्रण किया वीरवर चूड़ा ने

जननी–पद–सेवा करने का

कुम्भा ने भी व्रत ठान लिया

रत्नों से अंचल भरने का

यह वीर–प्रसविनी वीर–भूमि

रजपूती की रजधानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

जयमल ने जीवन–दान किया

पत्ता ने अर्पण प्रान किया

कल्ला ने इसकी रक्षा में

अपना सब कुछ कुबार्न किया

सांगा को अस्सी घाव लगे

मरहमपट्टी थी आँखों पर

तो भी उसकी असि बिजली सी

फिर गई छपाछप लाखों पर

हम सबको याद जबानी है…

अब भी करूणा की करूण–कथा

हम सबको याद जबानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

क्रीड़ा होती हथियारों से

होती थी केलि कटारों से

असि–धार देखने को ऊँगली

कट जाती थी तलवारों से

हल्दी–घाटी का भैरव–पथ

रंग दिया गया था खूनों से

जननी–पद–अर्चन किया गया

जीवन के विकच प्रसूनों से

अब तक उस भीषण घाटी के

कण–कण की चढ़ी जवानी है!

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

आँखों में हैं अंगार अभी…

भीलों में रण–झंकार अभी

लटकी कटि में तलवार अभी

भोलेपन में ललकार अभी

आँखों में हैं अंगार अभी

गिरिवर के उन्नत–श्रृंगों पर

तरू के मेवे आहार बने

इसकी रक्षा के लिए शिखर थे

राणा के दरबार बने

जावरमाला के गह्वर में

अब भी तो निर्मल पानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

चूड़ावत ने तन भूषित कर

युवती के सिर की माला से

खलबली मचा दी मुगलों में

अपने भीषणतम भाला से

राणा! तू इसकी रक्षा कर…

घोड़े को गज पर चढ़ा दिया

‘मत मारो’ मुगल–पुकार हुई

फिर राजसिंह–चूड़ावत से

अवरंगजेब की हार हुई

वह चारूमती रानी थी

जिसकी चेरि बनी मुगलानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

कुछ ही दिन बीते फतहसिंह

मेवाड़–देश का शासक था

वह राणा तेज उपासक था

तेजस्वी था अरि–नाशक था

उसके चरणों को चूम लिया

कर लिया समर्चन लाखों ने

टकटकी लगा उसकी छवि को

देखा कर्जन की आँखों ने

यह सिंहासन अभिमानी है…

सुनता हूं उस मरदाने की

दिल्ली की अजब कहानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है

तुझमें चूड़ा सा त्याग भरा

बापा–कुल का अनुराग भरा

राणा–प्रताप सा रग–रग में

जननी–सेवा का राग भरा

अगणित–उर–शोणित से सिंचित

इस सिंहासन का स्वामी है

भूपालों का भूपाल अभय

राणा–पथ का तू गामी है

दुनिया कुछ कहती है सुन ले

यह दुनिया तो दीवानी है

राणा! तू इसकी रक्षा कर

यह सिंहासन अभिमानी है॥

तो आप सभी को ये महाराणा प्रताप के प्रेरणा देने वाली कविताए कैसा लगा, कमेंट मे हमे जरूर बताए और इन्हे शेयर भी जरूर करे,

इन पोस्ट को भी पढे :-

शेयर करे
RELATED ARTICLES

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here