Swami Vivekananda Inspirational Biography in Hindi
स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणादायक जीवन परिचय
रामकृष्ण मिशन की शुरुआत करने वाले और विश्व धर्म सम्मेलन में सनातन धर्म का भारत के तरफ से प्रतिनिधित्व करने वाले स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे,
अपने ओजपूर्ण भाषण की हिन्दी से से शुरुआत करके “मेरे अमेरिकी भाईयो और बहनों” से हर किसी का दिल जीत लिया था पूरे विश्व को अपने चिन्तन और दर्शन और अपने प्रेरक विचारो के जरिये स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने पूरे विश्व को एक नई राह दिखाया और सदियों से चली आ रही भारत की विश्वगुरु परम्परा को भी आगे बढाया.
स्वामी रामकृष्ण के बताये हुए आदर्शो पर चलने वाले स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda भारतीय परम्परा, भारतीय संस्कृति, धर्म प्रवर्तक और देश प्रेम भावना से भरे हुए थे उनकी प्रेरणादायक जीवनी आज भी हम सभी को जीवन जीने की राह दिखाते है.
तो चलिए आज हम स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda के प्रेरक जीवनी | Biography in Hindi को जानते है.
स्वामी विवेकानन्द : एक संक्षिप्त परिचय
Swami Vivekananda: Hindi Biography
पूरा नाम :- नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त | ( जो बाद में स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda कहलाये)
बचपन का नाम :- नरेंद्रदत्त, नरेंद्र, नरेन
जन्मतिथि :- 12 जनवरी 1863
जन्मस्थान :- कलकत्ता (पश्चिम बंगाल- भारत)
माता:- भुवनेश्वरी देवी | Bhuvaneshwari Devi
पिता :- विश्वनाथ दत्त | Vishvanath Datta
गुरु :- रामकृष्ण परमहंस | Ramkrishna Paramhansa
संस्थापक :- रामकृष्ण मिशन | रामकृष्ण मठ
साहित्य रचना :- राज योग
दर्शन शास्त्र :- आधुनिक वेदांत, राज योग
मृत्यु :- 4 जुलाई 1902 (बेलूर मठ – पश्चिम बंगाल)
स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय
Swami Vivekananda Biography History in Hindi
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda का जन्म 12 जनवरी 1863 भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के कलकत्ता शहर में कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था स्वामी विवेकानन्द कुल 9 भाई बहन थे,
इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त जी कलकत्ता हाईकोर्ट में एक वकील थे और इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी जो की एक धार्मिक प्रवित्ति की थी जो अक्सर भगवान के भक्ति में लीन रहा करती थी, जिनका प्रभाव स्वामी विवेकानन्द के ऊपर भी दिखाई देता है,
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जिसके कारण ही स्वामी विवेकानन्द के संत रूपी व्यकित्व का निर्माण हुआ और स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेद्रनाथ दत्त था जिसे प्यार से उनके माता पिता नरेंद्र कहकर पुकारते थे.
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda बचपन से कुशाग्र बुद्धि के थे और वह नटखट स्वाभाव के भी थे जब भी उन्हें शरारत करने का मौका मिलता था वे फिर शरारत से चुकते नही थे.
लेकिन अपनी शरारत के साथ साथ स्वामी विवेकानन्द पढाई लिखाई में बहुत तेज थे स्वामी विवेकानन्द जो कुछ भी एक बार पढ़ते उन्हें वह हमेसा के लिए उन्हें याद हो जाता था,
इसके अतिरिक्त उनकी माँ के धार्मिक प्रवित्ति के कारण नियमित पूजा पाठ और कथा का आयोजन होता था जिसके कारण स्वामी विवेकानन्द महाभारत, रामायण की कथाये बहुत ही चाव से सुनते थे,
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जिस कारण घर का माहौल धार्मिक होने के कारण स्वामी विवेकानन्द का मन भी धीरे धीरे अध्यात्म की ओर लगने लगा था और उन्हें ईश्वर को जानने और पाने की उत्सुकता भी बढने लगी थी,
जिस कारण कभी कभी घर पर आये कथावाचको और पंडित जी से ऐसा प्रश्न भी पूछ लेते थे की उसका जवाब उन लोगो के पास नही होता था.
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स्वामी विवेकानन्द की शिक्षा
Swami Vivekananda Education Details in Hindi
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda बचपन से पढने में बहुत तेज थे उनका सर्वप्रथम स्कूली शिक्षा की शुरुआत 1871 में ईश्वरचंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुआ,
लेकिन अचानक उनके परिवार को 1877 में रायपुर में चले जाने के कारण उनकी पढाई बाधित हो गयी फिर 1879 में वापस कलकत्ता (वर्तमान में कोलकता के नाम से) आने के बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश के लिए परीक्षा दिया,
जहा वे फर्स्ट डिविजन से पास हुए जिसके बाद 1881 में इन्होने ललित कला से परीक्षा उत्तीर्ण किया और फिर सन 1884 ईसवी में कला संकाय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण किया और अपना स्नातक की डिग्री पूरी की.
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इसके अतिरिक्त वे विभिन्न विषयों में भी पारंगत थे उन्हें धर्म, इतिहास, दर्शन शास्त्र, कला, साहित्य और सामाजिक विज्ञान का भी गहन अध्धयन किये थे,
और साथ में भारतीय धर्म शास्त्र के ग्रंथो जैसे वेद, उपनिषद, रामायण, माहाभारत, भगवद गीता, पुराण और उपनिषद का भी अध्धयन करते थे और साथ में खेलकूद जैसे गतिविधियो में भी भाग लेते थे,
लेकिन अपने वकालत की पढाई के दौरान ही सन 1884 में ही इनके पिता की मृत्यु हो गयी जिसके कारण पूरे परिवार की जिम्मेदारी इनके कंधो पर आ गयी,
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लेकिन इस दुःख के घड़ी में स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी घबराये नही बल्कि अपने दृढ़ संकल्प और अडिग साहस का परिचय देते हुए पूरे परिवार की जिम्मेदारी अच्छे तरीके से निभाए.
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda के ऊपर डेविड ह्युम, आगस्ट कामटे, इमैनुल कांट, चार्ल्स डार्विन, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार जैसे महान विचारको का विचार से काफी प्रभावित थे जो भी स्वामी विवेकानन्द से मिलता,
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इनसे प्रभावित हुए बिना नही रह पाता, यहा तक की महासभा के प्रिंसिपल विलियम हेस्टी खुद लिखे है की “वास्तव में स्वामी विवेकानन्द एक अद्भुत विलक्षण प्रतिभा के धनी और जीनियस है,
मैंने कई जगहों पर भ्रमण किया है लेकिन ऐसा अद्भुत और विलक्षण प्रतिभा का बालक कभी नही देखा है, यहाँ तक की जर्मन के विश्वविद्यालय के दार्शनिक छात्रो में भी ऐसा बालक नही दिखा”.
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स्वामी विवेकानन्द और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस
Swami Vivekananda Aur Ramkrishna Paramhansa
ईश्वर की भक्ति और ईश्वर रूपी सत्य जानने की तीव्र इच्छा के कारण वे ब्रह्म समाज के महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर जी के सम्पर्क में आये और फिर स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने उनसे सवाल किया की “ठाकुर जी आपने क्या ईश्वर को देखा है”
इस सवाल को सुनकर ठाकुर जी अचम्भित हो गये फिर उन्होंने कहा अगर सच में ईश्वरीय शक्ति का दर्शन करना है तो उन्हें रामकृष्ण परमहंस | Ramkrishna Paramhansa के पास जाना चाहिए,
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यह बात सुनकर स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी ने रामकृष्ण के पास जाने का निर्णय लिया उस समय रामकृष्ण परमहंस | Ramkrishna Paramhansa कोलकता में स्थित माँ दक्षिणेश्वर काली माँ के मन्दिर में पुजारी थे.
और फिर इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी रामकृष्ण परमहंस जी के पास पहुच गये और उनसे भी वही फिर से सवाल किया “क्या आपने ईश्वर को देखा है”.
यह बात सुनकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया “हां मैंने ईश्वर को देखा है और ईश्वर से बात भी किया है और ये ठीक वैसे ही है जैसे मै तुम्हे देख रहा हु और तुमसे बात कर रहा हु”.
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स्वामी जी यह बात सुनकर स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda रामकृष्ण से इतना प्रभावित हुए की उन्हें अपना धर्म गुरु मान लिया और इस तरह स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी फिर हमेसा उनसे मिलने माँ दक्षिणेश्वर काली माता के मन्दिर में रामकृष्ण से मिलने के लिए जाने लगे,
और इस तरह स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda और रामकृष्ण परमहंस जी के बीच में गुरु शिष्य का रिश्ता बन गया.
स्वामी विवेकानन्द की यात्राये
Swami Vivekananda Travels Details in Hindi
मात्र 25 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने गेरुआ वस्त्र धारण कर सन्यासी बन गये और फिर पूरे भारत के भ्रमण के लिए पैदल ही निकल पड़े,
वे अपने इन यात्राओ के दौरान अयोध्या, मथुरा, काशी, वृन्दावन जैसे कई तीर्थ स्थानों पर गये उन्हें इस यात्राओ के दौरान भारत के भिन्न भिन्न लोगो से मिलने का मौका हुआ,
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जिसमे अमीर, गरीब, उच्च नीच, जाति भेदभाव जैसे अनेक कुरीतियों का भी पता चला जिसको खत्म करने के लिए उन्होंने धर्म और सत्य के ज्ञान का सहारा लेकर उन्हें खत्म करने को कोशिश भी किया,
इस तरह स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी को अपनी यात्रा के दौरान पर यह भी अनुभव हुआ की भारत के लोगो को अध्यात्म की ज्ञान के बजाय विकास की ज्यादा जरूरत है जिनसे इन तमाम बुराईयों और कुरूतियो को खत्म किया जा जा सकता है.
फिर भारत की गरीबी खत्म करने के लिए स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने अमेरिका जाने का निर्णय लिया और फिर यह उन्हें मौका सन 1893 ईसवी में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में मिला.
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उस ज़माने में भारतीयों को अमेरिका, यूरोप जैसे देशो में बहुत ही हीन भावना से देखा जाता था जिसके कारण कई लोगो ने प्रयास किया की विश्व धर्म सम्मेलन में विवेकानंद को बोलने का मौका ही न मिले,
लेकिन एक अमेरिकी प्रोफेसर के प्रस्ताव के बाद स्वामी विवेकानन्दको | Swami Vivekananda को उस सम्मेलन में बोलने का मौका प्राप्त हुआ, जिसके बाद भी लोगो को लगा की स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी इतने बड़े विश्व स्तर मंच पर कुछ बोल नही पायेगे.
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लेकिन इन सब से परे स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने अपने भाषण की शुरुआत हिन्दी में किया और उनका पहला ही वाक्य “मेरे अमेरिकी भाईयो और बहनों” पूरे अमेरिका में छा गया,
और जिसे सुनकर लोगो में तालिया की गूंज सुनाई देने लगी और इस तरह स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda अपने ओजस्वी भाषण के चलते पूरे विश्व में छा गये और स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda की यह भाषण | Speech पूरे जग प्रसिद्द हो गया,
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और हाल में ही भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी | Narendra Modi ने भी इसका जिक्र करते हुआ कहा था “अमेरिकी इतिहास में 11 सितम्बर का बहुत बड़ा महत्व है,
एक तरफ जहा वर्षो पहले शांति की स्थापना के लिए इसी दिन स्वामी विवेकानन्द ने धर्म सभा में अपना ओजपूर्ण भाषण दिया था जबकि दूसरी तरह विनाश की लीला के रूप में आतंकवादी हमले के रूप में भी याद किया जाता है”
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda के इस भाषण के बाद जिसके बाद से पूरे दुनिया में भारत का कद ऊचा हो गया और फिर लगभग 3 वर्षो तक स्वामी विवेकानन्द अमेरिका में ही रहकर वहा के लोगो को अध्यात्म और तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान किया,
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इसके पश्चात वे फिर से भारत लौट आये फिर उन्होंने श्रीलंका का भ्रमण किया और इस दौरान वहा के लोगो को अध्यात्म की ज्ञान का प्रचार प्रसार किया.
स्वामी विवेकानन्द का योगदान और कार्य
Swami Vivekananda Social Work in Hindi
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना किया जिसका उदेश्य नये विकसित भारत के निर्माण में योगदान देने के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज का निर्माण करना और सामाजिक कार्यो को बढ़ावा देना था.
इसके बाद सन 1898 में स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी ने बेलूर मठ का भी स्थपाना किया जिसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय जीवन दर्शन का प्रचार प्रसार करना था.
इसके अतिरिक्त अंग्रेजी शिक्षा के भी घोर विरोधी थे उनका मनाना था की यदि भारतीय को विकसित होना है और अपने धर्म शास्त्र और अपनी भाषा के जरिये ही आगे बढ़ा जा सकता है,
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अंग्रेजी शिक्षा से सिर्फ बाबु ही बन सकते है जबकि भारतीय संस्कृति की शिक्षा से सर्वागीर्ण विकास हो सकता है और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी ने रामकृष्ण मिशन के जरिये अनेक स्कूल, कालेजो का निर्माण भी कराया,
और इस तरह रामकृष्ण मिशन आज भी हमारे देश में अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्यरत है
स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु
Swami Vivekananda Death Details in Hindi
महज 39 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda को 4 जुलाई 1902 ईसवी में मृत्यु हो गयी जिसका प्रमुख कारण स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda के अत्यधिक रोग होने का कारण माना जाता है.
लेकिन उनके शिष्यों के अनुसार स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने पहले ही अपने मौत की भविष्यवाणी कर दिया था की वे 40 वर्ष से ज्यादा नही जियेगे,
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और इस तरह स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda जी महज 39 की आयु में ही इस संसार से विदा हो गये.
भले ही स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda कम उम्र में ही इस संसार को छोड़कर चले गये लेकिन उससे पहले पूरे विश्व को मानवता का सन्देश देते चले गये उनके द्वारा सत्य और अध्यात्म की मार्ग आज भी लोगो के प्रेरणादायक है,
स्वामी विवेकानन्द | Swami Vivekananda ने कहा भी था की “उठो, जागो और तब तक नही रुकना जबतक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” और इस उनके द्वारा कहे गये अनमोल विचार हम सभी को जीवन में आगे बढने का रास्ता दिखलाते है.
पढ़े :-स्वामी विवेकानन्द के 30 महान विचार Swami Vivekananda Great Quotes in Hindi
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विवेकानंद के बारे में और अधिक जानने के लिए विकिपीडिया पर पढ़े – स्वामी विवेकानन्द
Very nice story