Ayodhya Ram Mandir Babri Masjid History In Hindi
अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद की जानकारी और सुप्रीमकोर्ट का फैसला
अब तक भारत का सबसे विवादित मामला राम मंदिर का है हिन्दू धर्म की मान्यता है कि श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या में है और उनके जन्मस्थान पर एक विशाल मंदिर था जिसे मुगल शासक बाबर ने तोड़कर वहाँ पर एक मजिद बना दी तब से लेकर अब तक यह मामला चलता आ रहा है कोर्ट हिन्दू ओर मुस्लिम एकता के कारण निर्णय नही ले पा रही है, और देखा जाय तो भारतीय इतिहास में यह विवाद 450 वर्षो से चलने वाला सबसे लम्बा विवाद है
तो चलिए अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में पूरे विस्तार से जानते है.
अयोध्या राम मंदिर विवाद का इतिहास
Ayodhya Ram Mandir Babri Masjid History In Hindi
सन 1426 में बाबर द्वारा राम मंदिर को तोड़कर राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था इसलिए 1743 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार खतरनाक विवाद हुआ था, जो की अबतक विवाद चल रहा है. जिसका अब फैसला सुप्रीम कोर्ट का 17 नवम्बर 2019 तक फैसला आने की उम्मीद है. जिसके लिए केस की सभी कारवाई और सुनवाई 16 October 2019 तक पूरा कर लिया है. जो की जल्द जी सुप्रीमकोर्ट अपना फैसला सुनाएगी.
1751 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा लेकिन फिर भी दोने धर्मों के मध्य तालमेल नही बैठ रहा था 1951 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई जिस के चलते दोनो धर्मो में हिंसा बढ़ने लगी, तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया,
सन् 1963 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया जो फैसला मुस्लिम समाज के खिलाफ लगा इस लिए मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
सन् 1979 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की 3 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हिन्दुओ द्वारा बाबरी मस्जिद गिराई गई, परिणामस्वरूप दोनो धर्म के लोगो मे दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं, उसके दस दिन बाद 23 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गय लिब्रहान आयोग को 23 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 16 साल लगाए,
1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया सन 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 900 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा,
जांच आयोग का कार्यकाल 51 बार बढ़ाया गया।
31 मार्च 2009 को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ा गया।
2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2016 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 60 वर्ष बाद 30 मार्च के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया था.
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद फैसला
Ayodhya Ram Mandir Babri Masjid Case Result in Hindi
इसके बाद लगातार 40 दिन बहस और सुनवाई पूरी जो की 16 अक्टूबर 2019 तक चला, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मन्दिर पर आखिरी फैसला 17 नवम्बर 2019 तक सुनाने का फैसला किया है जो की इस तारीखों के बीच कभी भी अयोध्या मंदिर पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला आ सकता है. और इस केस की सुनवाई कर रहे है चीफ जस्टिस भी 17 नवम्बर के बाद अपने पद से रिटायर्ड लेंगे तो उनकी भी यही कोशिश है की कोर्ट अपना फैसला भी इस दौरान पूरी कर ले.
क्या भाजपा और RSS राममंदिर के लिए कोई पहल करेगी ?
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी राममंदिर बनवाने का वायदा किया है लेकिन इसके लिए उसने संवैधानिक प्रावधानों के पालन का ही रास्ता उचित बताया है। यानी जब तक मामला सर्वोच्च अदालत में है, सरकार इसके लिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करेगी। लेकिन कोर्ट की तरफ से कोई आदेश आने के बाद ही वह विकल्पों की तलाश करेगी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, भाजपा सत्ता के केंद्र में है, इसलिए संवैधानिक व्यवस्थाओं का संरक्षण करना उनका सबसे बड़ा दायित्व है। सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ेगी। हालांकि, कोर्ट के निर्देश के मुताबिक इसके लिए सभी पक्षों के बीच एक समझौता कराने की दिशा में भी प्रयास किया जाएगा।
भाजपा और RSS को लेकर कोई भ्रम नहीं है क्योंकि वैचारिक रूप से दोनों दल एक जैसे हैं। लेकिन सरकार को यह कार्य जल्द से जल्द करना चाहिए क्योंकि रामभक्त इसके लिए वर्षों से इंतजार करते आ रहे हैं।
तो ऐसे में यह देखना रहेगा की हिंदुस्तान के लोग अदालत के इस फैसले को कैसे स्वीकार करते है जो की अपने आपसी भाईचारा और साम्प्रदायिक सौहार्द की मिशाल भी बन सकता है. जो गंगा जमुनी तहजीब संस्कृति की साक्षी भी बनेगा.
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