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Biography

देश के आदर्श क्रांतिकारी भक्त राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

वो कहते है न आजादी के परवानो के लिए अपने लिए जीना क्या अपने लिए मरना क्या, आजादी के परवानो का जीवन ही देश की सेवा और देशभक्ति में बिता, उनका अपने जीवन का एक एक पल देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया, जब जब भारत देश देश के स्वन्त्रन्ता संग्राम का जिक्र होगा तब तब आजादी के लिए कही गयी इन पक्तियों का जिक्र जरुर होंगा.

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजूएँ कातिल में है”

ये चंद लाइने देशभक्तों के मन में अजब सा जूनून पैदा कर देता था और ये लाइन भारत के महान स्वन्त्रन्ता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil ने लिखी और और एक लेखक के रूप में राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil ने अपना सबकुछ देश की आजादी के लिए न्योछावर करते हुए ये लाइन बोलते हुए शहीद हो गये.

राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil के लिखे हुए देशभक्ति की कविताये लोगो में आजादी पाने के लिए अजब उर्जा का संचार करती थी और यही नही जब जब अंग्रेज काकोरी कांड का भी जिक्र करेगे तो राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil का नाम जरुर लेंगे यह वही कांड था जब पूरी अंग्रेजी शासन हिल गयी थी,

राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil भारत के एक महान क्रांतिकारी होने के साथ साथ उच्च कोटि के लेखक, कवि, शायर महान साहित्यकार भी थे जिन्होंने तन मन धन से अपना सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया, और महज 30 वर्ष की आयु में ही अंग्रेजो ने इन्हें फासी दे दिया, तो आईये जानते है ऐसे महान देशभक्त के जीवन के बारे में जिनकी कही गयी देशभक्ति की कविताए आज भी लोगो को जोश से भर देती है.

राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी

Ram Prasad Bismil Biography in Hindi

ramprasad bismil

Ram Prasad Bismil Ka Jivan Parichay – राम प्रसाद बिस्मिल | Ram Prasad Bismil का जन्म 11 जून 1897 को भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के पावन धरी शाहजहापुर जिले के खिरनीबाग मुह्ह्ले में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित मुरलीधर जिनके वंशज मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से आते थे और माता का नाम श्रीमती मूलमती था राम प्रसाद बिस्मिल अपने माता पिता की दूसरी सन्तान थे,

क्यूकी इनकी माता पिता की पहली संतान पैदा होते ही मर चूका था और रामप्रसाद बिस्मिल भी जब पैदा हुए तो इतने कमजोर थे की इनके भी बचने की कोई उम्मीद नही थी इनके दोनों हाथो की उंगलियों में चक्र का निशान बना था जिसे देखकर ज्योतिषी ने भविष्यवाणी भी किया था ऐसे दिव्यपुत्र का बचना बहुत ही मुश्किल है.

और यदि यह बच्चा बच गया तो एक चक्रवती सम्राट की तरह अपना नाम रोशन करेगा जिसके पश्चात इनके माता पिता राम भक्त होने के कारण इनका नाम रामप्रसाद रखा और उन्हें लोग प्यार से राम कहकर पुकारते थे, तथा अपने दोस्तों में राम प्रसाद बिस्मिल “पंडित जी” के नाम से मशहुर हुए और इनका बिस्मिल उपनाम था जो की एक उर्दू शब्द है जिसका हिंदी अर्थ आत्मिक रूप से आहत होता है.

राम प्रसाद बिस्मिल की शिक्षा

Ram Prasad Bismil Education in Hindi

बचपन से ही राम प्रसाद बिस्मिल के शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा इन्हें घर में भी इनके पिताजी अक्षरों का ज्ञान कराते थे और समय उर्दू का भी बोलबाला था जिसके चलते इनके पिताजी इनको मौलवी जी के पास भी उर्दू सीखने के लिए भेजते थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल बचपन में बहुत ही चंचल और इनका ज्यादा मन खेलने कूदने में ही लगता था जिसके चलते एक बार इनकी खूब पिटाई भी हुई थी जिसका जिक्र स्वय राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में किया है

राम प्रसाद बिस्मिल लिखते है –

“बचपन से ही मेरे पिताजी मेरी पढाई लिखाई का बहुत ध्यान रखते थे और थोड़ी सी भी लापरवाही या गलती पर पिटते थे मुझे अच्छी तरह से याद है जब मुझे वर्णमाला के “उ” अक्षर लिखने को दिया गया था मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मुझे लिखना नही आया फिर पिताजी अपने कार्य के लिए कचहरी चले गये और फिर मै खेलने चला गया और जब शाम को पिताजी को पता चला की मै लिखने का प्रयास छोड़कर खेलने चला गया था तो बंदूक के गज से मेरी खूब पिटाई हुई थी यहाँ तक की पिताजी ने मुझे इतना पिटा की वो लोहे की छड ही टेढ़ी हो गयी और किसी तरह मै भागकर दादाजी के पास गया तब जाकर उस दिन मेरी जान बची थी”
.

इस घटना के बाद तो राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन ही बदल गया और राम प्रसाद बिस्मिल अपने पढाई में अच्छे तरह से ध्यान देने लगे और अपनी आठवी कक्षा तक हर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किये थे लेकिन फिर गलत दोस्तों की साथ की कुसंगति के चलते लगातार दो साल मिडिल परीक्षा में फेल हो गये जिसके चलते इनके परिवार वालो को बहुत दुःख हुआ जिसके चलते अब राम प्रसाद बिस्मिल अंग्रेजी पढना चाहते थे लेकिन इनके पिता मुरलीधर अंग्रेजी पढ़ाने के पक्ष में नही थे लेकिन माँ से जिद के चलते इन्हें नौवी क्लास में अंग्रेजी पढने को भेजा गया.

और फिर यही राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज के सम्पर्क में आये जिसके चलते इनका जीवन ही बदल गया, राम प्रसाद बिस्मिल के पिता सनातन धर्म के उपासक थे और राम प्रसाद बिस्मिल के आर्य समाज में रूचि लेने के कारण तो इन्हें घर से बाहर निकल जाने को कहा जिसके चलते राम प्रसाद बिस्मिल तुरंत घर से बाहर चले गये और दो दिन तक घर पर नही आये फिर इसके पश्चात इनके पिताजी को अपने इस कार्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और फिर राम प्रसाद बिस्मिल को वापस घर ले आये.

लगभग 14 वर्ष की आयु में राम प्रसाद बिस्मिल को पैसे चुराने की आदत पड़ गयी थी जिसके चलते ये अपने पिताजी के संदूक से पैसे चुराने लगे थे और इन चुराए पैसो से उपन्यास खरीदकर पढ़ा करते थे जिसके चलते गलत दोस्तों के प्रभाव के चलते भांग का नशा भी करने लगे थे और प्रेम के गजल उपन्यास भी इनका शौक बन गया था,

अचानक एक दिन इनके पिताजी ने भांग के नशे में ही इन्हें पकड लिया और फिर इनके चोरी करने का सारा भांडा फूट चूका था जिसके चलते इनकी खूब पिटाई हुई और इनके सारे उपन्यास की किताबे फाडकर फेक दिया गया फिर आगे चलकर राम प्रसाद बिस्मिल समझदार होने पर सारी बुराईयों का त्याग कर दिया.

फिर आगे चलकर स्वामी सोमदेव के सम्पर्क में आने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन का उद्देश्य ही बदल गया फिर राजनीती पर खुलकर विचार विमर्श करने के पश्चात इनके मन में देशभक्ति की भावना का संचार हुआ जिसके पश्चात आर्य समाज से प्रभावित होकर राम प्रसाद बिस्मिल ने कुमार सभा में शामिल हो गये जिसका उद्देश्य धार्मिक पुस्तको के दावे पर बहस, निबन्ध लेखन और वार्तालाप का आयोजन होता था,

धीरे धीरे ये संगठन पूरे समाज में फैलने लगा हर जगह इसका प्रचार प्रसार होने लगा जिसके डर के कारण विद्रोहियों ने सार्वजनिक स्थानों पर इस संघठन को प्रतिबंधित कर दिया गया जिसके पश्चात राजनीती का शिकार होने के बाद कुमार सभा का अंत हो गया.

मैनपुरी कांड

राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी हुकुमत से लड़ने के लिए और भारत देश को आजाद कराने के लिए “मातृदेवी” नाम का एक क्रांतिकारी संघटन की स्थापना किया अपने गुरु सोमदेव के निर्देशन में पंडित गेंदालाल के संघटन “शिवाजी समिति के साथ मिलकर अंग्रेजो के खिलाफ एकजुट करना शुरू किया जिसके चलते 1918 में देशवासियों के नाम सन्देश का परचा भी बाटा गया और इस कार्य के लिए राम प्रसाद बिस्मिल ने 3 बार डकैती भी डाला,

फिर अंग्रेजो से बचने के लिए ग्रेटर नोयडा के घने जंगलो में छुप गये जिसके कारण अंग्रेजो ने राम प्रसाद बिस्मिल को भगौड़ा घोषित कर दिया और यही घटना इतिहास में मैनपुरी कांड के नाम से जाना जाता है जो की अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ आग भड़काने का काम हुआ.

काकोरी कांड

Kakori Conspiracy in Hindi

मैनपुरी घटना के पश्चात सन 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहापुर के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए जहा पर उनकी मुलाकात लाला लाजपत राय से हुई जिनसे मिलकर राम प्रसाद बिस्मिल काफी प्रभावित हुए फिर कांग्रेस से असंतुष्ट होने पर सन 1923 में सुप्रसिद्ध क्रन्तिकारी लाला हरदयाल के नेतृत्त्व में एक नई पार्टी का गठन किया जिसे हिंदुस्तान रिपपब्लिक असोसिएशन के नाम से जाना गया अब पार्टी को चलाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ने लगी थी,

जिसके चलते 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल ने 10 लोगो जिनमे चंद्रशेखर आजाद, असफाक उल्लाह खान, राजेन्द्र लाहिड़ी, शचीन्द्रनाथ बक्शी आदि ने मिलकर लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास चलती ट्रेन को रोककर सरकारी खजाने को लुट लिया जिसके चलते 26 सितम्बर 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के साथ लगभग 40 लोगो को अंग्रेजो ने गिरफ्तार कर लिया और फासी की सजा सुनाया गया जिस फैसले से हर भारतीय आहत था,

फिर इस घटना के बाद 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में महज 30 वर्ष की आयु में राम प्रसाद बिस्मिल को फासी दे दी गयी फासी देने से पहले राम प्रसाद बिस्मिल के चेहरे पर तनिक सी भी सिकन नही थी वे तो हसते हुए ये गीत गुनगुनाते हुए जा रहे थे.

“मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे।

बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।।

जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे।

तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे”

उनकी यही आखिरी इच्छा भी थी की

“I wish the downfall of British Empire”

यानी मेरी आखिरी इच्छा यही है ब्रिटिश साम्राज्य का नाश हो और फिर परमपिता ईश्वर को याद करते हुए राम प्रसाद बिस्मिल हँसते हँसते फासी ने फंदे पर झूल गये.

इसके पश्चात इनके शव को उनको परिवार वालो को सौप दिया जहा पर पहले से मौजूद इनके लाखो समर्थको ने पूरे सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के तट पर कर दिया गया.

राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत के बाद तो पूरे हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया था अब तो हर कोई अंग्रेजो के शासन से आजाद होना चाहता था हर जगह क्रांति के बिगुल बज उठे और यही आगे चलकर अंग्रेजी शासन के अंत का कारण बना, भले ही राम प्रसाद बिस्मिल अंग्रेजी जुल्म के चलते शहीद हो गये लेकिन आज भी हर भारतीय दिलो में राम प्रसाद बिस्मिल जिन्दा है और जिन्दा रहेगे.

तो आपको राम प्रसाद बिस्मिल की प्रेरक जीवनी कैसा लगा, कमेंट में जरुर बताये और इस पोस्ट को शेयर भी जरुर करे.

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